Friday, October 23, 2009

किसी और की तरह किसी और की जगह

Monday, August 17, 2009


किसी की जिन्दगी जीने को मिल जाती तो अच्छा था
अपनी जिन्दगी को कुछ फ़ुर्सत मिल गयी होती
कहीं सहेज के रख देता दुनियां से छुपा करके
जी भर जी अगर लेता तो उसकी भी खबर लेता

किसी के ख्वाब आंखों में लेने की तमन्ना है
अपने बौने ख्वाबों से कभी तो पिंड कुछ छूटे
ख्वाबों के जहां में ख्वाब भी तो आसमां के हों
बन जाये हकीकत जो भला वो ख्वाब ही कैसा

किसी की आंख से दुनियां दिख पाये तो कैसा हो
सावन की अंधी इन आंखों को कुछ समझ आये
नजर का और नजरिये का फर्क शायद कुछ होता हो
नजारा देख के दुनियां का मैं भी जान पाऊंगा

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