Friday, May 15, 2009

ख्वाहिश

कोई नया यौवन हो
कोई नया जीवन हो
कोई नयी हों सांसें
कोई नयी धड़कन हो

जीवन से ऊब गए हम जीवन भर जीते जीते
एक पुराने ढंग से हर पल हर दिन बीते
वक्त नया जो ला दे ऐसा एक साधन हो

ख्वाबों में बसे प्रियतम का रूप सिंगार नया हो
दिल की धड़कन में गूंजे वो इक प्यार नया हो
नजरों को नयापन दे जो एक नया दर्पण हो

सपना एक नया जो देखा ना सपनों में
एक पराया रिश्ता ढूंढें जो अपनों में
अपनापन जो नया दे एक परायापन हो

छेड़ो जीवन का गीत कोई

छेड़ो जीवन का गीत कोई
मनभावन सा संगीत कोई
दिल को छू ले वो साज तो दो
मेरे गीतों को आवाज तो दो
समझा दो कुछ पागल मन को
सुलझा तो दो इस उलझन को
कैसे पल भी न गुजर पाए
कैसे जाए दिन बीत कोई

चेहरा एक मेहताब हो ज्यों
इक खिलता हुआ गुलाब हो ज्यों
बादल में से ज्यों धूप खिले
ऐसा मोहक सा रूप खिले
तस्वीर में कैसे रंग भरूं
मुझको बतलादे रीत कोई

सुंदर सा इक सपना होगा
इक मीत मेरा अपना होगा
जिसको दे दूँ दिल की धड़कन
अपना कर दूँ जीवन अर्पण
जो ना टूटे ऐसा बंधन
दे दो मुझको मनमीत कोई

Thursday, May 14, 2009

ख़ुद ही जी के देखो

ये हमसे पूछो कि क्या जिंदगी है
ख़ुद ही जी के देखो कि क्या जिंदगी है


वो मिटटी में लेटा सा रोता सा बचपन
अभावों में जगता औ सोता सा बचपन
न ममता भरी गोद दादी न नानी
न गुडिया खिलौने न कोई कहानी
कभी सर्दियों में ठिठुरता वो बचपन
कभी धूप की लौ में जलता वो बचपन

अभावों के बचपन में क्या जिंदगी है
ख़ुद ही जी के देखो कि क्या जिंदगी है

वो गलियों वो कूचों में फिरता लड़कपन
फटे चीथडों में वो लिपटा लड़कपन
टूटे घरोंदों में महलों के सपने
समाये हैं संसार आँखों में अपने
हजारों वो जख्मों को सीने की कोशिश
फटेहाल जीवन को जीने की कोशिश

लड़कपन के सपनों में क्या जिंदगी है
ख़ुद ही जी के देखो कि क्या जिंदगी है

नशे में कहीं लडखडाती जवानी
कहीं दूर जीवन से जाती जवानी
न मंजिल न ही हमसफ़र साथ कोई
जो हाथों में ले ले नहीं हाथ कोई
न दुनियाँ से लड़ लड़ के जीने का वादा
न हिम्मत ही दिल में न कोई इरादा

पलायन में ढूंढो कि क्या जिंदगी है
ख़ुद ही जी के देखो कि क्या जिंदगी है


बीमारियों
से जो टूटे बुढापा
कभी हार कर खुद से रूठे बुढापा
न बचपन की यादें न यौवन की बातें
निराशा में डूबे दिन और रातें
कहीं मौत की बस तमन्ना मिलेगी
नयी कोई शायद वो दुनियाँ मिलेगी

घुटते बुढापे में क्या जिंदगी है
ख़ुद ही जी के देखो कि क्या जिंदगी है

अभी तुमने देखा कहाँ जिन्दगी को
नहीं जानकर गम क्या समझो ख़ुशी को
अभी बेबसी को कहाँ तुमने देखा
दुःख की हंसी को कहाँ तुमने देखा
झेला नहीं हलकी मुश्किल को
छोटी सी बातों ने तोडा है दिल को

उन बातों में देखो कि क्या जिंदगी है
अगर समझो शायद बड़ी जिंदगी है
तुम्हारे लिए ही पड़ी जिंदगी है
तुम्हारे लिए ही पड़ी जिंदगी है

दिल से

वो घड़ी बीतकर नहीं आई
लाख वो यादकर नहीं आई
चैन दिन को नहीं मिलता क्यों है
नींद क्यों रातभर नहीं आई

बेचकर जिंदगी के कुछ टुकड़े
दो घड़ी का सुकून लेना था
लुट गई जिंदगी पूरी लेकिन
चाह वो चाह कर नहीं आई

जिंदगी क्या है जैसे परछाई
पास जाओ तो दूर ये भागे
उम्र भर था किया महसूस इसे
हाथ पर एक पल नहीं आई